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Punjab by Election 2024: SAD के वोट बैंक से किसकी किस्मत बदलेगी? AAP और कांग्रेस के लिए चुनौती, बीजेपी को मिलेगा लाभ

Punjab by Election 2024: पंजाब में चार विधानसभा सीटों पर उपचुनाव इस बार काफी रोमांचक होने वाले हैं। लगभग 32 वर्षों के बाद, 1992 से, शिरोमणि अकाली दल (SAD) इस उपचुनाव में मुकाबले से बाहर है। शिरोमणि गुर्द्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनावों में, अकाली दल के प्रमुख सुखबीर बादल के करीबी सहयोगी हरजिंदर सिंह धामी ने चौथी बार अध्यक्ष पद संभाला है। अब यह देखना बाकी है कि धार्मिक राजनीति करने वाला अकाली दल का वोट बैंक उपचुनाव में किस दिशा में जाता है।

SAD का वोट बैंक और त्रिकोणीय मुकाबला

इस त्रिकोणीय मुकाबले में, SAD का वोट बैंक किसी भी उम्मीदवार की किस्मत बदलने की क्षमता रखता है, और यह पूरी तरह से निर्णायक साबित हो सकता है। राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, SAD का वोट बैंक बीजेपी के उम्मीदवारों के पक्ष में जा सकता है, खासकर उनके पुराने गठबंधन संबंधों के मद्देनजर। बीजेपी और SAD के बीच 25 वर्षों का गठबंधन रहा है।

Punjab by Election 2024: SAD के वोट बैंक से किसकी किस्मत बदलेगी? AAP और कांग्रेस के लिए चुनौती, बीजेपी को मिलेगा लाभ

बीजेपी के चार उम्मीदवार

बीजेपी ने गिद्दड़बाहा से मंप्रीत सिंह बादल को मैदान में उतारा है। मंप्रीत बादल ने 1995 में SAD के टिकट पर गिद्दड़बाहा से पहला चुनाव लड़ा था। इसके बाद, वे यहाँ तीन बार विधायक रह चुके हैं। मंप्रीत, जो पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की सरकार में वित्त मंत्री रहे, का SAD के नेताओं के साथ अच्छा संबंध है। मंप्रीत अब बीजेपी में हैं, लेकिन उनका राजनीतिक परिवार SAD से जुड़ा हुआ है। यह मंप्रीत के लिए लाभकारी हो सकता है, क्योंकि सुखबीर बादल यहां टंकारी के कारण चुनावी मैदान में नहीं हैं। इसी तरह, देरा बाबा नानक सीट से रवि किरण कालों भी लंबे समय तक अकाली दल में रह चुके हैं। उनके पिता निर्मल सिंह कालों भी पंजाब विधानसभा के स्पीकर और पूर्व मंत्री रह चुके हैं। रवि किरण का भी बीजेपी के बड़े नेताओं के साथ सीधा संबंध है। चब्बेवाल सीट से बीजेपी के सोहन सिंह थंडल भिक भी अकाली दल में रह चुके हैं और वे भी अकाली सरकार में मंत्री रह चुके हैं। इस स्थिति में, पूर्व अकाली नेताओं को इन तीन सीटों पर SAD के वोट बैंक का समर्थन मिल सकता है।

AAP और कांग्रेस के लिए चुनौती

इस त्रिकोणीय मुकाबले में, AAP और कांग्रेस के लिए SAD के वोट बैंक को अपने पक्ष में करना बड़ी चुनौती होगी। राज्य सरकार और SAD सुप्रीमो के बीच राजनीतिक टकराव लंबे समय से चल रहा है। वहीं, गठबंधन सरकार में, SAD हमेशा कांग्रेस के साथ प्रतिस्पर्धा में रहा है। इस स्थिति में, AAP और कांग्रेस के लिए SAD के वोट बैंक में सेंध लगाना मुश्किल हो सकता है।

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पिछले लोकसभा चुनावों के परिणाम

गिद्दड़बाहा निर्वाचन क्षेत्र में, AAP को सबसे अधिक 20,310 वोट मिले, जबकि कांग्रेस ने 20,273 वोट प्राप्त किए। SAD को 19,791 वोट मिले और बीजेपी को 14,850 वोट मिले।

देरा बाबा नानक में, कांग्रेस ने सबसे अधिक 48,198 वोट प्राप्त किए, जबकि AAP ने 44,258 वोट लिए। SAD को 17,099 वोट मिले और बीजेपी को 5,981 वोट मिले।

barnala में, AAP को 37,674 वोट मिले, बीजेपी ने 19,218 वोट प्राप्त किए, कांग्रेस को 15,176 वोट मिले और SAD को 5,724 वोट मिले।

चब्बेवाल में, AAP को 44,933 वोट मिले, कांग्रेस ने 18,162 वोट प्राप्त किए, SAD को 11,935 वोट मिले और बीजेपी को 9,472 वोट मिले।

राजनीतिक समीकरण और संभावनाएँ

इन आंकड़ों के आधार पर, उपचुनाव में SAD के वोट बैंक का चुनाव परिणाम पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। अगर SAD का वोट बैंक बीजेपी की ओर बढ़ता है, तो AAP और कांग्रेस को इस चुनाव में नुकसान उठाना पड़ सकता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि SAD का वोट बैंक अब केवल उनके पुराने कार्यकर्ताओं के लिए नहीं, बल्कि बीजेपी के लिए भी महत्वपूर्ण हो सकता है।

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पंजाब के उपचुनाव 2024 में सभी राजनीतिक दलों के लिए यह एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। SAD के बिना, ये उपचुनाव और भी अधिक प्रतिस्पर्धात्मक और रणनीतिक हो सकते हैं। चुनावी रणनीतियों, वोट बैंक की दिशा और दलों के आपसी संबंधों पर नजर रखने की आवश्यकता है। यह देखना होगा कि कौन सी पार्टी SAD के वोट बैंक को अपने पक्ष में करने में सफल होती है और चुनावी परिणाम क्या बनते हैं।

इस प्रकार, पंजाब में आने वाले उपचुनाव राजनीतिक दलों के लिए एक बड़ा चैलेंज और संभावनाओं का स्थान बन गए हैं, जहाँ हर एक वोट महत्वपूर्ण होगा।

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